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लियो टॉलस्टॉय की रचनाएँ


आगे.


गाँव में जब सन्नाटा हो गया, तो धर्म सिंह सुरंग से बाहर निकल आया। पर चरन सिंह के पैर से एक पत्थर गिर पड़ा। धमाका हुआ तो संपतराव का कुत्ता भूँका, लेकिन धर्म सिंह ने उसे पहले ही हिला लिया था, उसका शब्द सुन कर वह चुप हो गया।
रात अँधेरी थी। तारे निकले हुए थे। चारों ओर सन्नाटा था। घाटियाँ धुंध से ढँकी हुई थीं। चलते-चलते रास्ते में किसी छत पर से एक बू़ढ़े के राम नाम जपने की आवाज सुनाई दी। दोनों दुबक गए। थोड़ी देर में फिर सन्नाटा छा गया, तब वे आगे बढ़े।
धुंध बहुत छा गई। धर्म सिंह तारों की ओर देख कर राह चलने लगा। ठंड के कारण चलना सहज न था, धर्म सिंह कूदता फाँदता चला जाता था, चरन सिंह पीछे रहने लगा।
चरन सिंह- भाई धर्म, जरा ठहरो, जूतों ने मेरे पैरों में छाले डाल दिए।
धर्म सिंह- जूते निकाल कर फेंक दो, नंगे पैर चलो।
चरन सिंह ने जूते निकाल कर फेंक दिए, पत्थरों ने उसके पाँव घायल कर दिए। वह ठहर-ठहर कर चलने लगा।
धर्म सिंह- देखो चरन, पाँव तो फिर चंगे हो जाएँगे, पर यदि मरहठों ने आ पकड़ा तो फिर समझ लो कि जान गई।
चरन सिंह चुप होकर पीछे चलने लगा। थोड़ी दूर जाने पर धर्म सिंह बोला- हाय, हाय, हम रास्ता भूल गए, हमें तो बाईं ओर की पहाड़ी पर चढ़ना चाहिए था।
चरन सिंह- ठहरो, जरा दम लेने दो। मेरे पैर घायल हो गए हैं। देखो, रक्त बह रहा है।
धर्म सिंह- कुछ चिंता नहीं, ये सब ठीक हो जाएँगे, तुम चले चलो।
वे लौट कर बाईं ओर की पहाड़ी पर चढ़ गए। आगे जंगल मिला। झाड़ियों ने उनके सब वस्त्र फाड़ डाले। इतने में कुछ आहट हुई, वे डर गए। समीप जाने पर मालूम हुआ कि बारहसिंगा भागा जा रहा है।
प्रातःकाल होने लगा। किला यहाँ से अभी सात मील पर था। मैदान में पहुँचकर चरन सिंह बैठ गया और बोला- मेरे पाँव थक गए, मैं अब नहीं चल सकता।
धर्म सिंह- (क्रोध से) अच्छा तो रामराम, मैं अकेला ही चलता हूँ।
चरन सिंह उठकर साथ हो लिया। तीन मील चलने पर अचानक सामने से घोड़े की टाप सुनाई दी। वे भागकर जंगल में घुस गए।
धर्म सिंह ने देखा कि घोड़े पर चढ़ा हुआ एक मरहठा जा रहा है। जब वह निकल गया तो धर्म बोला कि भगवान ने बड़ी दया की कि उसने हमें नहीं देखा। चरन भाई, अब चलो।
चरन सिंह- मैं नहीं चल सकता, मुझमें ताकत नहीं।
चरन सिंह मोटा आदमी था, ठंड के मारे उसके पैर अकड़ गए। धर्म सिंह उसे उठाने लगा, तो चरन सिंह ने चीख मारी।
धर्म सिंह- हैंहैं! यह क्या, मरहठा तो अभी पास ही जा रहा है, कहीं सुन न ले अच्छा, यदि तुम नहीं चल सकते हो, तो मेरी पीठ पर बैठ जाओ।
धर्म सिंह ने चरन सिंह को पीठ पर बिठला कर किले की राह ली।
धर्म सिंह- भाई चरन सिंह, सीधी तरह बैठे रहो, गला क्यों घोंटते हो?

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